Friday, 21 October 2022

रावण का राजा रघु से रहस्यमई युद्ध

आज हम आपको रामायण की एक अनोखी रहस्यमई कहानी बताने जा रहे हैं रामायण में भी जिसका जिक्र नहीं किया गया क्योंकि यह बात रामजी के पुर्वजो से जुड़ी है।
14 विधाओ का ज्ञाता रावण पराक्रमी था हम सभी को पता है रावण अनीति के साथ अहंकारी भी था इसलिए भगवान राम ने स्वयं उसे युद्ध में उसे पराजित कर मार गिराया रावण ने 72 चौकड़ी यानि 288 युग राज किया (सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग) का अंत होता है तब 1 चौकड़ी पुर्ण होती फिर से पृथ्वी प्रलय होकर वापस युगों की स्थापना होती है।

रावण शिवजी की भक्ति से वह सब कुछ प्राप्त 
कर चुका था जिसकी चाह रावण को थी । रावण नहीं चाहता था कि उसके जैसा भक्त कोई और हो इसलिए तीनों लोक में रावण का हाहाकार मचा हुआ था ! शास्त्रों में ऐसा बताया जाता है उस समय इक्ष्वाकु वंश के राजा रघु भगवान के ऐसे भक्त थे जो भक्ति के साथ मानव कल्याण हेतु हमेशा बड़े बड़ें यज्ञ करते रहते थे, धीरे धीरे राजा रघु की प्रशंसा चारों तरफ होने लगी आस पास के सभी जन राजा रघु की प्रशंसा करने लगे जब यह बात रावण तक पहुंची तब रावण को राजा रघु की प्रशंसा अच्छी नहीं लगी।

रावण ने ठान लिया यदि ऐसा पराक्रमी राजा रघु हैं तो मैं उससे युद्ध कर उसे पराजित करूंगा ताकी राजा रघु को मानने वालो के दिलों पर सिर्फ रावण का राज हो इसलिए रावण में राजा रघु को युद्ध के करने का पैगाम भेजा राजा रघु ने जिसका कोई जवाब नहीं दिया रावण ने बार बार सुचना भेजी मगर राजा रघु का रावण के लिए कोई उतर नहीं था अंत में रावण राजा रघु से युद्ध के लिए रवाना हो गया, उस समय राजा रघु सरस्वती नदी के किनारे अनेक ब्राह्मणों के साथ यज्ञ में आहुतियां दें रहे थे तब रावण ने राजा रघु से कहां मैं लंका नरेश यज्ञ पुर्ण के बाद राजा रघु को युद्ध के लिए ललकार रहा हूं ! ऐसा माना गया है "क्षत्रिय कभी चुनौती को नकार नहीं सकता" रावण पराक्रमी के साथ पंडित भी था उसे मालूम था किसी के यज्ञ में विघ्न डालने पर कितन बड़ा महादोष लगता है, 
राजा रघु ने रावण से कहा : हे दशानन 
मैं अभी मानव कल्याण के लिए हवन कर रहा हूं आपका यह न्यौता मुझे स्वीकार है आपको यज्ञ पुर्ण तक इंतजार करना पड़ेगा तब रावण वहीं पर बैठकर इंतजार करने लगा । रावण यज्ञ (हवन) की आहुतियां मंत्र उच्चारण देखने के साथ सुन भी रहा था रावण के लिए यह सब यज्ञ करना देवताओं को प्रसन्न करना एक आम बात थी क्योंकि रावण 14 विद्या 6 शास्त्र 18 पुराणो का पुरा जानकर था जब यज्ञ पुर्ण हुआ तब ब्राह्मणों ने कहां राजन यज्ञ सम्पन्न हुआ यह कण लिजिए इनको (अन्न के कण) दिशाओं में फैंक दीजिए ।
हमारे धर्म में यदि बड़ा छोटा यज्ञ करने के बाद 
3 दिशाओं में कण फैंके जाते हैं दक्षिण दिशा खाली बताई जाती है इसलिए उस तरफ कण नहीं फैंके जाते, राजा रघु ने देखते ही देखते दक्षिण दिशा में भी दो कण फैंक दिए यह देख रावण जोर जोर से हंसने लग गया, मन ही सोचने लगा कैसा राजा हैं जिसको अभी तक अनुभव भी नहीं की यज्ञ में कौनसी दिशा में कण फैंके जाते हैं। रावण सोचने पर मजबूर हो गया आखिर राजा ने ऐसा क्यों किया, अब रावण को युद्ध करने से पहले यह बात जाननी थी कि आखिर राजा ने दक्षिण दिशा में कण क्यों फैंके । 


राजा रघु यज्ञ सम्पन्न के बाद रावण के पास आए और कहां दशानन अब हम युद्ध आराम से कर सकते हैं क्या आप तैयार हैं रावण जोरो हंसने लगा जब राजा ने हंसने का कारण पुछा तो रावण ने कहा हे राजा मैंने तो आते वक्त सोचा था जिसकी लोग इतनी प्रशंसा कर रहे हैं तो राजा रघु कोई बड़ा पराक्रमी एवं वेदों का भी ज्ञाता होगा मगर यहां आकर तो मैंने सब उल्टा ही देख लिया, मुझे पहले यह बताओ राजा यज्ञ सम्पन्न तो तीन दिशाओं में कण फैकने से हो जाता है तो तुम्हारा दक्षिण (खाली दिशा) में कण फैंकने का क्या कारण था, पहले मुझे यह बता दो फिर हम युद्ध प्रारम्भ करेंगे।

तब राजा रघु ने कहा दशानन मैंने तीन दिशाओं में कण फैंके यज्ञ सम्पन्न हुआ तब मैंने दिव्य दृष्टि से दक्षिण दिशा में देखा तो 80 योजन दूर एक सिंह गाय को मार रहा था तब मैंने गाय को बचाने के लिए 2 कण दक्षिण में फैंक दिए सिंह खत्म हो गया उससे गाय के प्राण बच गए।
रावण ने पुनः पूछा कितने योजन दूर राजा ने कहा 80 योन (यानि 1 योजन में 12 कि.मी. होते हैं) राजा रघु की यह बात सुन रावण को हंसी आ गई रावण ने कहा हे राजा आपको क्या लगता है इतनी दुरी से सिंह खत्म हो गया, राजा ने कहां हां दशानन वो खत्म भी हुआ गाय के प्राण भी बच गये। राजा रघु की बात पर रावण को विश्वास नहीं हो रहा था इसलिए रावण ने कहा राजा मैं देखकर आता हूं फिर आकर युद्ध प्रारम्भ करेंगे, राजा ने कहा हां आप देखकर आ जाओ 80 योजन से चार कदम आगे पिछे नहीं फिक्स 80 योजन पर ही सिंह मरा पड़ा है!
रावण देखने चल पड़ा जब 80 योजन पर शेर मरा पड़ा देखा 
रावण तो आश्चर्य में पड़ गया ! होश उड़ गए रावण के जब
 उसने देखा सिंह के तलाट पे दो गैंहू के कण चिपके हुए थे जो राजा रघु ने फैंके थे, राजा रघु वहां राह देखते रह गए रावण बिना युद्ध किए वहां से सीधा लंका की और चल दिया । रावण में सोचा जो 80 योजन दूर बिना हाथ लगाए किसी के प्राण ले सकता हैं उसके सामना करना कठीन ही नहीं नामुमकिन भी है ॥

॥जय श्री राम॥